एक दिन छोटी सी बात हो गई। कई बार कुछ छोटी बातें दैनिक जीवन में छोटी बातें गहरा असर करती है और याद भी रह जाती है। तो उस दिन यह हुआ कि मैं रसोई के काम से थोड़ी सी फुरसत पाते ही बैठक की तरफ गई। वहां अंशुमान अख़बार में , प्रध्युम्न मोबाईल में और संजय जी फोन पर किसी से बात करने मशगूल थे।
मेरे दोनों बेटों में एक बात कॉमन यह हो रही थी कि दोनों पैर हिलाये जा रहे थे और अपने अख़बार , मोबाईल व्यस्त थे। मुझे पैर हिलाने से सख्त चिढ है। मैंने डाँटते हुए उन दोनों को पैर हिलाने से मना किया।
दोनों ने चौंक कर मेरी और देखा। लेकिन संजय जी आदतन चुप नहीं रह सके। बोले, " लो भाई , रसोई की गर्मी अब यहाँ भी आ गई ! रामू नहीं है तो हम क्या करें ? और ये पैर हिलाने से क्या हो जायेगा ! "
मैंने कहा , " कहते हैं कि पैर हिलाने से माँ मर जाती है ! "
" हैं ! ये क्या अन्धविश्वास की बातें बच्चों को सिखा रही हो , लो , अब मैं भी पैर हिलाता हूँ ! " यह कह कर संजय जी भी पैर हिलाने लगे।
मैंने कहा , " संजय जी ! आप पैर हिलाइये , कोई मनाही नहीं और कोई फ़िक्र नहीं। "
संजय जी बोले , " क्यों ? "
मैंने कहा, " क्यूंकि बात तो मेरे बच्चों की माँ की है यानि मेरी ! आपकी माँ की किसे परवाह है ! "
यह सुनते ही उनके पैर जस के तस वहीँ रुक गए क्या , मानो थम या जम से गए। मैंने कहा कि अब क्या हुआ। संजय जी चौंकते हुए बोले कि सच में अब तो पैर हिल ही नहीं रहे।
मेरे दोनों बेटों में एक बात कॉमन यह हो रही थी कि दोनों पैर हिलाये जा रहे थे और अपने अख़बार , मोबाईल व्यस्त थे। मुझे पैर हिलाने से सख्त चिढ है। मैंने डाँटते हुए उन दोनों को पैर हिलाने से मना किया।
दोनों ने चौंक कर मेरी और देखा। लेकिन संजय जी आदतन चुप नहीं रह सके। बोले, " लो भाई , रसोई की गर्मी अब यहाँ भी आ गई ! रामू नहीं है तो हम क्या करें ? और ये पैर हिलाने से क्या हो जायेगा ! "
मैंने कहा , " कहते हैं कि पैर हिलाने से माँ मर जाती है ! "
" हैं ! ये क्या अन्धविश्वास की बातें बच्चों को सिखा रही हो , लो , अब मैं भी पैर हिलाता हूँ ! " यह कह कर संजय जी भी पैर हिलाने लगे।
मैंने कहा , " संजय जी ! आप पैर हिलाइये , कोई मनाही नहीं और कोई फ़िक्र नहीं। "
संजय जी बोले , " क्यों ? "
मैंने कहा, " क्यूंकि बात तो मेरे बच्चों की माँ की है यानि मेरी ! आपकी माँ की किसे परवाह है ! "
यह सुनते ही उनके पैर जस के तस वहीँ रुक गए क्या , मानो थम या जम से गए। मैंने कहा कि अब क्या हुआ। संजय जी चौंकते हुए बोले कि सच में अब तो पैर हिल ही नहीं रहे।
मैंने हर्ट होते हुए कहा कि आपने क्या सोचा था ?
हंसी के दौर में एक बात उभर कर आई कि माँ तो माँ है , यहाँ सिर्फ विश्वास है , अन्धविश्वास नहीं।
हंसी के दौर में एक बात उभर कर आई कि माँ तो माँ है , यहाँ सिर्फ विश्वास है , अन्धविश्वास नहीं।